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रविवार, 8 सितंबर 2024

मिर्च की फसल पर लगने वाले रोगों एवं कीटों से बचाव

 मिर्च की फसल पर लगने वाले रोगों एवं कीटों से बचाव

कूकडा या पर्ण कुंचन रोग- 


मिर्च की फसल पर वायरस एवं थ्रीप्स की रोकथाम पत्तियों मैं पर्ण कुंचन या कूकड़ा रोग जिससे पति ऊपर और नीचे की साइड मुड़ ने लग जाती हैं। जिससे फसल की उपज कुआलिटी और आमदनी काफि प्रभावित होती है यदि हम सही समय पर और सही अच्छी ऑर्गेनिक दवाईयो का छिड़काव करेंगे तो इस तरीके की समस्या से बचा जा सकता है। 

मिर्च में बैक्टीरिया वायरस मैं सकईंग पेस्ट या रस चूसने वाले कीट जैसी बीमारियों को यदि समय से नियत्रित करते हैं और सही दवा का उपयोग करते हैं तो इससे बचा जा सकता हैं। 

आप मिर्च की फसल पर देख रहे हैं दोस्तों यह है मिर्च में मकड़ी का प्रकोप



 और यह जो दूसरा है थ्रीप्स का प्रकोप 




इस प्रकार मिर्च की फसल पर 🦠वायरस का प्रकोप देखने को मिलता हैं


इसलिए इसकी पहचान करना आना चाहिए मिर्च मैं पौधरोपण के पश्चात विशेष सावधानी की जरूरत होतीं हैं यदि रोग आने से पहले सही दवा का उपयोग करते हैँ । तो इस वायरस जनित बीमारी से बचा जा सकता है। 

हम आपके लिए ऑर्गेनिक दवाईयो का कॉम्बिनेशन लेकर आये हैं जिसमें माईटीसाइड या मकड़ी और 🦠वायरस -जी का पैक है। 

अब इस कॉम्बिनेशन का प्रयोग किस प्रकार से करें इसके बारे मैं जानेंगे -

 माईटीसाइड इसमें एजाडरेक्टीन या नीम एक्सट्रैक्ट 500 PPM और धातुरा एक्सट्रैक्ट की मात्रा होती है( कतरा बोटेनिकल माईटीसाइड) 


यह वनस्पतिक फॉर्मूलेशन पर आधारित हैं यह दवाई मिर्च एवं अन्य सब्जियों को भी 🦠वायरस से बचाती हैं । 

हम बात कर रहे हैं माईटीसाइड के बारे में जो थ्रीप्स पर, सफेद मक्खी पर, जैसे मकड़ी इत्यादि पर अच्छे से काम करती है आप जानते हैँ कि मिर्च की फसल पर 🦠वायरस को फैलाने का काम रस चूसने वाले कीट ही करते हैं तो इसके द्वारा इनको आसानी से नियत्रित किया जा सकता है । 

अब बात करते हैं (माईटीसाइड) दवाई डोज के बारे मैं तो 250 ml( 200 लीटर )पानी में मिला कर प्रति एकड़ स्प्रे करें। 


🦠वायरस इत्यादि बीमारियों से बचाता है ,(वायरस -जी) दवाई का उपयोग पहले से करने पर इन बीमारियों का सामना नहीं करना पड़ता हैं इसके लिए इसके लिए आपको इसका डोज 100 ml (200 लीटर )पानी में प्रति एकड़ स्प्रे करें । 



अब हम आपको बताते हैँ की डोज किस प्रकार तैयार करना है तो दोस्तों तैयार करने के लिए सबसे पहले 150 लीटर पानी लेना है एक एकड़ के लिए उसमें 250 ml माईटीसाइड और 100ml 🦠वायरस -जी को मिलाकर ठीक तरीके से घोल लेना है और ठीक तरीके से स्प्रे की टंकी इत्यादि में भर लेना है। 


इसका उपयोग पहले से करने पर इस प्रकार कि बीमारियों से बचा जा सकता है और यदि बीमारियां होने के पश्चात करते हैं तो उसको दूर किया जा सकता हैं, नई पत्तियों को रोग मुक्त किया जा सकता है अब यदि आपने रोपण कर दिया हैं तो रोपण के 25 दिन बाद पहला स्प्रे कर सकते हैं और दूसरे स्प्रे के लिए 15 से 20 दिन का गैप देकर आप स्प्रे कर सकते हैँ। तो इस प्रकार आप मिर्च की फसल पर दो - तीन बार स्प्रे कर सकते हैं तो इस प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है। 


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Dr. VIKRAM CHOUDHARY

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शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

सरसों की फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन एवं फसल बुआई से पहले की क्रिया –


 सरसों की फसल की बीजदर  700gm-1 kg प्रति एकड़ रखें 

👉बेसल डोज- 25kg डीएपी, 25kg पोटाश, 6kg सल्फर प्रति एकड

सरसों की फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन –

 सरसों की उपज को बढ़ाने तथा उसे टिकाऊपन बनाने के मार्ग में नाशक जीवों और रोगों का प्रकोप एक प्रमुख समस्या है। इस फसल को कीटों एवं रोगों से काफी नुकसान पहुंचता है जिससे इसकी उपज में काफी कमी हो जाती है। यदि समय रहते इन रोगों एवं कीटों का नियंत्रण कर लिया जाये तो सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा सकती है। चेंपा या माहू, आरामक्खी, चितकबरा कीट, लीफ माइनर, बिहार हेयरी केटरपिलर आदि सरसों के मुख्य नाशी कीट हैं। काला धब्बा, सफेद रतुआ, मृदुरोमिल आसिता, चूर्णिल आसिता एवं तना गलन आदि सरसों के मुख्य रोग हैं।


प्रमुख कीट

चेंपा या माहू:

सरसों में माहू पंखहीन या पंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रंग के 1.5-3.0 मिमी. लम्बे, चुभाने एवं चूसने वाले मुखांग वाले छोटे कीट होते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नई फलियों से रस चूसकर उसे कमजोर एवं क्षतिग्रस्त तो करते ही है, साथ ही साथ रस चूसते समय पत्तियों पर मधुस्राव भी करते हैं। इस मधुस्राव पर काले कवक का प्रकोप हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित हो जाती है। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर-जनवरी से लेकर मार्च तक बना रहता है।


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प्रबंधन: 

माहू के प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण करें। प्रारम्भ में प्रकोपित शाखाओं को तोड़कर भूमि में गाड़ दें। जब फसल में कम से कम 10 प्रतिशत पौधे की संख्या चेंपा से ग्रसित हो व 26-28 चेंपा प्रति पौधा हो तब  👉थियामेथोक्जाम 25% WG 20-40gm प्रति एकड 200-400 लीटर पानी , क्लोरोपायरीफास् 20EC @200ml प्रति एकड़ 200 लीटर पानी, एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एसपी 500 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 150 मिली. को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में सायंकाल में छिड़काव करें। यदि दुबारा से कीट का प्रकोप हो तो 15 दिन के अंतराल से पुन: छिड़काव करें।


आरा मक्खी: 

इस मक्खी का धड़ नारंगी रंग का होता है। इसका सिर व पैर काले होते हैं। सुंडियों का रंग गहरा हरा होता है। जिनके ऊपरी भाग पर काले धब्बों की तीन कतारें होती हैं। इस कीड़े की सुंडियां फसल को उगते ही पत्तों को काट-काट कर खा जाती है। इसका अधिक प्रकोप अक्टूबर-नवम्बर में होता है।





प्रबंधन: 

गर्मियों की गहरी जुताई करें व सिंचाई करने पर भी इसका प्रकोप कम हो जाता है। इस कीट की रोकथाम हेतु मेलाथियान 50 ई.सी. 1 लीटर को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर या  250ml को 125 लीटर पानी में पर बीघा  में छिड़काव करें। आवश्यकता पडऩे पर दुबारा छिड़काव करें।

डायमंड बैक मोथ

क्षति के लक्षण:

  • युवा लार्वा द्वारा एपिडर्मल पत्ती के ऊतकों को खुरचने के कारण सफेद धब्बे
  • पत्तियां मुरझाई हुई दिखाई देती हैं लेकिन बाद के चरणों में लार्वा पत्तियों में छेद कर देते हैं
  • यह फलियों में छेद करके विकसित हो रहे बीजों को भी खा जाता है

कीट की पहचान :

  • लार्वा:  पीले-हरे रंग का, पूरे शरीर पर बिखरे हुए बारीक काले बाल 
  • वयस्क: छोटे भूरे रंग के वयस्क के पंख हल्के सफ़ेद रंग के होते हैं, जिनके अंदरूनी किनारे पीले होते हैं। आगे के पंखों के अंदरूनी किनारों पर तीन सफ़ेद त्रिकोणीय धब्बे होते हैं, विपरीत पंखों के त्रिकोणीय निशान हीरे के आकार के दिखाई देते हैं। पिछले पंखों पर लंबे महीन बालों की एक झालर होती है



प्रबंधन :

  • पतंगों की गतिविधि पर नजर रखने के लिए 5/एकड़ की दर से फेरोमोन ट्रैप लगाना
  • सप्ताह में कम से कम दो बार लार्वा को समूह अवस्था में एकत्रित करना और सावधानीपूर्वक नष्ट करना
  • कोटेसिया प्लूटेला को संरक्षित करें  , क्योंकि यह डायमंड बैक मॉथ के लिए एक महत्वपूर्ण परजीवी है।  डायडेग्मा इंसुलारे  भी डायमंडबैक मॉथ का सबसे महत्वपूर्ण परजीवी है
  • बड़े हो चुके लार्वा के नियंत्रण के लिए 5% मैलाथियान पाउडर @37.5 किग्रा/हेक्टेयर या 8.5kg पर बीघा की दर से प्रयोग करें


प्रमुख रोग

सफेद रतुवा या श्वेत किट्ट: 

इस रोग के कारण 23-55 प्रतिशत तक नुकसान होता है। सरसों के अतिरिक्त यह रोग मूली, शलजम, तारामीरा, फूलगोभी, पत्तागोभी, पालक और शकरकंद पर भी पाया जाता है।





प्रबंधन

बीजों को मेटालेक्जिल (एप्रोन 35 एस डी) 6 ग्राम/किग्रा. बीज या मैन्कोजेब 2.5 ग्राम/किग्रा. बीज से उपचारित कर बोयें। खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) या रिडोमिल एम.जेड. 72 फफूंदनाशी के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव 15-15 दिन के अंतराल पर करने के सफेद रतुआ से बचाया जा सकता है।


तना गलन:

 इस रोग के कारण लगभग 50-60 प्रतिशत तक हानि होती है।






प्रबंधन: 

हमेशा बुवाई के लिए स्वस्थ व प्रमाणित बीज काम में लेें। फसल की कटाई के बाद गर्मियों में गहरी जुताई करें। बुवाई के 50-60 दिन बाद निचली पत्तियों को हटा दें। बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करके बोयें। खड़ी फसल में 50-60 दिन पश्चात् कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत कवकनाशी को पानी में घोलकर छिडकाव करें।


पत्ती धब्बा रोग: 

सामान्यतया यह रोग दिसम्बर-जनवरी में प्रकट होता है। इस रोग के कारण 35-65 प्रतिशत तक हानि होती है।


प्रंबधन: 

बुवाई के लिए हमेशा स्वस्थ व प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें। फसल चक्र अपनायें। गर्मियों की गहरी जुताई करें। खड़ी फसल मेें इस रोग की रोकथाम हेतु 45 दिन बाद मेन्कोजेब (डाइथेन एम-45), या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 2.5 ग्राम/ लीटर पानी के घोल का छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देने पर 15-15 दिन से अधिकतम तीन छिड़कें। 


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